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पंजाब में आतंकवाद के दिनों में टंडन सांप्रदायिक सौहार्द के लिए प्रयासरत रहे, पार्टी से ऊपर होकर काम किया, हैं प्रेरणास्त्रोत

August 14, 2019 01:08 PM

Star Khabre, Faridabad; 14th August : अपनी बातचीत के शुरुआत में बोले, मुझे महामहिम जैसी ब्रिटिश परंपरा को खत्म करना है। आदरणीय कह देना ही काफी होता है। फिर पंजाबी में सभी का सत्कार करते हुए, सत श्री अकाल बोले। चूंकी यह भाषण पूर्व गवर्नर बलराम जी दास टंडन की याद में रखा गया था। इसलिए टंडन पर प्रमुखता से बोले। वैंकेया नायडु ने कहा कि बंटवारे के समय टंडन ने मदद के लिए कैंप लगाए थे। वे तीन बार मंत्री पद पर रहे। उन्होंने पार्टी से ऊपर उठकर लोगों की मदद की। इसलिए जरूरी हो जाता है कि नई पीढ़ी उनके बारे में जाने। बोले, वह दौर था जब राष्ट्रीय मुद्‌दों पर दलीय मतभेद नहीं थे। सामाजिक, राजनेतिक कार्यकर्ता एक से अधिक राजनेतिक संगठन में सक्रिय रहते थे। देश के विभाजन की बात करें तो यह पंजाब पर विशेष तौर से भारी पड़ा था। इस प्रदेश को सबसे अधिक मानव त्रासदी, झेलनी पड़ी। ऐसे में, कई स्वयंसेवी युवा संगठन इस क्षेत्र में सक्रिय थे जो विभाजन से आई आपदा में, शरणार्थियों, उनके जानमाल, सम्मान की रक्षा के लिए तत्पर थे।

टंडन जी ने इस कठिन समय में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रूप में पंजाब और आसपास के क्षेत्रों-डलहौजी, चंबा में अथक परिश्रम किया। विभाजन से आए शरणार्थियों के लिए शिविर आयोजित किए।  उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश की। वर्तमान पीढ़ी शायद ही जानती हो कि 1927 में अमृतसर में जन्मे टंडन का सार्वजनिक जीवन सन 1953 में ही अमृतसर नगर निगम के सदस्य के रूप में प्रारंभ हुआ। 1957-77 तक वह 5 बार पंजाब विधान सभा के सदस्य रहे। इसके बाद साल 1997-2002 तक पुन: पंजाब विधान सभा के सदस्य बने।

उन्होंने तीन बार पंजाब सरकार में मंत्री पद के दायित्व का निर्वाह भी किया। अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में, टंडन जी ने नि:स्वार्थ राष्ट्र सेवा, निष्ठापूर्ण समाज सेवा के प्रमाणिक मानदंड स्थापित किए जो जनप्रतिनिधियों और सामाजिक, राजनेतिक कार्यकर्ताओं की वर्तमान पीढ़ी के लिए अाज भी उतने ही अनुकरणीय हैं।

सन 1962 और 1965 युद्धों के दौरान टंडन ने राष्ट्रीय उद्देश्यों के लिए जनसहयोग और जनभागीदारी को संगठित किया। वे एक साधारण नागरिक थे। पर देश की सेनाओं की सहायता करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। जनता ने प्रति बेहद उदारतापूर्वक थे और अपने स्वर्ण भूषण दान भी किए आवश्यकता थी तो स्थानीय स्तर पर एक राष्ट्रनिष्ठ प्रमाणिक नेतृत्व किए जो इन जन-प्रयासों को संगठित कर सके।

लोगों को टंडन की कार्यक्षमता, राष्ट्रनिष्ठा, और प्रमाणिकता पर पूरा विश्वास था। उनके नेतृत्व में सर्वदलीय कमेटी बनी तथा स्थानीय नागरिकों ने मनोयोग से अपना धन, देश की रक्षा के लिए दान कर दिया। इसी प्रकार 1965 के युद्ध में सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए अमृतसर जैसे सीमावर्ती जिले में कैंटीन सुविधा आयोजित कीं।

पंजाब में आतंकवाद के दिनों में टंडन  सांप्रदायिक सौहार्द और शांति के लिए प्रयासरत रहे। इस दौरान उनके घर पर आतंकवादी हमले भी हुए । फिर भी अपनी और अपने परिजनों की सुरक्षा की चिंता किए बगैर, आतंकी घटनाओं से प्रभावित लोगों की सेवा करते रहे। उनके पुर्नवास के लिए समिति बनाई। गरीब परिवारों के लिए चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई।

अपने सार्वजनिक जीवन में टंडन अनेक समाजसेवी संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े रहे और स्थानीय समुदाय की सेवा करते रहे जैसे रक्तदान, नि:शुल्क शिक्षा, चिकित्सा,  बेसहारा विधवाओं को नि:शुल्क राशन, वस्त्र उपलब्ध कराया।

आज के जनप्रतिनिधियों को उनके कृतित्व से प्रेरणा लेनी चाहिए।

लोकतंत्र के लिए आवश्यक ये: हमारे लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि जनप्रतिनिधि लोकतांत्रिक आदर्शों और संस्थाओं में जनता की आस्था को बनाए रखें। दलीय राजनीति, लोकतंत्र में स्वाभाविक है। विभिन्न दल राजनेतिक विकल्प उपलब्ध कराते हैं। परंतु राष्ट्रहित और समाज के आदर्शों का कोई विकल्प नहीं होता। हाल के वर्षो में हमारे लोकतांत्रिक संस्थाओं से जनआकांक्षाएं बढ़ी है। लेकिन क्या हम उन आकांक्षाओं के साथ न्याय कर पा रहे हैं ? हमारे विधायी संस्थान विचार-विमर्श और सहमति का माध्यम हैं, व्यवधान का नहीं। ऐसे समय में टंडन जी द्वारा स्थापित राष्ट्रनिष्ठा के मानदंडों का सदैव स्मरण रहना चाहिए । हर नागरिक को समाज हित और देश हित में अपने सूक्ष्म व्रतों को पूरा करने का संकल्प लेना चाहिए।

की 370 अनुच्छेद पर बात:  भारत एक है और इसलिए 370 अनुच्छेद हटाया जाना एक अच्छा कदम है।

बता दें कि इस लेक्चर के लिए बलराम जी के बेटे व पीयू के सीनेटर संजय टंडन ने 10 लाख रुपए का एंडोमेंट फंड पीयू को दिया था। इस कार्यक्रम के लिए यूनिवर्सिटी ने सभी को पहले से ही गाइडलाइंस जारी कर दी गई थी

 

 
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