Star Khabre, Faridabad; 26th September : बॉलीवुड में अपने सदाबहार अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले देव आनंद साहब आज हमारे बीच भले ही नहीं हैं. लेकिन जब भी हिंदी सिनेमा के इतिहास का जिक्र होगा तब-तब देव आनंद का जिक्र किया जाएगा क्योंकि हिंदी सिनेमा का इतिहास उनके बगैर अधूरा ही रहेगा. देव आनंद को सदाबहार कहा जाता था क्योंकि उनकी उम्र चाहे कोई भी रही हो, एक्टिंग के लिए उनके जोश में कभी कोई कमी नहीं दिखाई दी. आज बॉलीवुड के सबसे रोमांटिक हीरो देव आनंद की बर्थ ऐनिवर्सरी है. इस मौके पर देव आनंद के उन दिनों का जिक्र भी जरूरी है, जब उन्होंने एक्टर बनने के लिए कठिनाइयों का सामना किया. देवआनंद को एक्टर बनने के अपने ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था. एक्टर बनने के लिए देव आनंद जब मुंबई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रुपये थे.
26 सिंतबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे धर्मदेव पिशोरीमल आनंद उर्फ देव आनंद ने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेट कॉलेज में पूरी की थी. देव आनंद इसके आगे भी पढ़ना चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है. अगर वह आगे पढ़ना चाहते हैं तो नौकरी कर लें. देव आनंद ने निश्चय किया कि अगर नौकरी ही करनी है तो क्यों ना फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए. 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रुपये थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था. देव आनंद ने यहां पहुंचकर रेलवे स्टेशन के पास ही एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया. उस कमरे में उनके साथ तीन अन्य लोग भी रहते थे, जो देव आनंद की तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
जब काफी दिन यूं ही गुजर गए तो देव आनंद ने सोचा कि अगर उन्हें मुंबई में रहना है तो जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ेगी, चाहे वह कैसी भी नौकरी क्यों न हो. अथक प्रयास के बाद उन्हें नौकरी मिल गई. यहां उन्हें सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था. यहा देव आनंद को 165 रुपये मासिक वेतन मिलना था. इसमें से 45 रुपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज देते थे. लगभग एक साल तक नौकरी करने के बाद वह अपने भाई चेतन आनंद के पास चले गए जो उस समय भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जुड़े हुए थे. उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ ‘इप्टा’ में शामिल कर लिया. इस बीच देव आनंद ने नाटकों में छोटे मोटे रोल किए. साल 1945 में रिलीज हुई फिल्म ‘हम एक हैं’ से बतौर अभिनेता देव आनंद ने अपने सिने करियर की शुरुआत की. 1948 में रिलीज हुई फिल्म ‘जिद्दी’ देव आनंद के फिल्मी करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई. इस फिल्म की नवकेतन के बैनर तले उन्होंने 1950 में अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी. इसके बाद देव आनंद अपने बैनर तले 1951 में ‘बाजी’ बनाई. गुरुदत्त के निर्देशन में बनी फिल्म ‘बाजी’ की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार हो गए.
फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था. एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई. देव आनंद ने सुरैया को डूबने से बचाया. इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं लेकिन सुरैया की नानी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़ी परवान नहीं चढ़ सकी. 1954 में देव आनंद ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली. कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और नवकेतन बैनर की स्थापना की.