Shikha Raghav, Faridabad; 01st October : हरियाणा के कृष्ण का चक्र एक बार फिर चल गया और हरियाणा के उद्योग मंत्री विपुल गोयल व भाजपा नेता यशवीर डागर व नयनपाल रावत का टिकट कट गया। राजनीतिक विश£ेषकों का मानना है कि यदि हरियाणा में राजनीति करनी है तो केन्द्रीय राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर से बैर रखना संभव नहीं है। कृष्णपाल गुर्जर अपने बैरियों को कभी नहीं बक्शते और वह सही समय पर सही वार कर अपने बैरियों को चारों खाने चित कर देते हैं। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि कृष्णपाल गुर्जर अपने कद के बराबर भी किसी नेता को नहीं आने देते, उससे पहले ही वह उस नेता के पर कुत्तर देते हैं।
अभी हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनावों के लिए अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की है जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने फरीदाबाद जिले से तीन पूर्व प्रत्याशियों की टिकट काट कर नए प्रत्याशियों को इस बार मैदान में उतारा है। फरीदाबाद विधानसभा से उद्योग मंत्री विपुल गोयल का टिकट काटकर नरेन्द्र गुप्ता को, तिगांव से राजेश नागर, बडख़ल से सीमा त्रिखा, एनआईटी से पूर्व प्रत्याशी यशवीर डागर का टिकट काटकर नगेन्द्र भड़ाना को, बल्लभगढ़ से मौजूदा विधायक मूलचंद शर्मा को, पृथला से पूर्व प्रत्याशी नयनपाल रावत का टिकट काटकर सोहनपाल छौक्कर को दिया गया है।
आखिर क्यों कटा विपुल गोयल का टिकट
“चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोए-दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए”
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो टिकट बंटवारे में केवल दो ही पाटे थे। एक मुख्यमंत्री और दूसरा कृष्णपाल गुर्जर। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल और सांसद कृष्णपाल गुर्जर ने मिलकर ऐसी बिसात बिछाई की, सभी चारों खाने चित हो गए। सबसे पहले बात करेंगे विपुल गोयल की टिकट पर, दरअसल विपुल गोयल की टिकट काटने के पीछे सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री और सांसद ही रहे लेकिन सवाल यह उठता है कि जब केंद्रीय राजनीति में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी, केन्द्रीय मंत्री धमेन्द्र प्रधान, हरियाणा प्रभारी अनिल जैन सभी से विपुल गोयल के अच्छे संबंध थे तो फिर इनकी टिकट पर कैंची किसने चलाई। यही सब नेता टिकट बंटवारे में निर्णायक भूमिका रखने वाले भी थे।
यहां पर सूत्रों की माने तो केन्द्रीय राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर ही विपुल गोयल को राजनीति में लेकर आए थे लेकिन पिछले लगभग 3 वर्षों से दोनों में दूरियां बढ़ती चली गई। इसका जीवंत उदारण पिछले वर्ष बडख़ल के दशहरा मैदान में देखा गया था, जहां पर पहली बार यह सार्वजनिक मंच पर खुलेआम तकरार करते हुए दिखे। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में भी विपुल गोयल ने कहीं न कहीं अंदरखाने केन्द्रीय राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर का विरोध किया था। अब बारी थी विधानसभा चुनाव की। कृष्णपाल गुर्जर ने अपना राजनैतिक कौशल दिखाते हुए खासे चौसर बिछाई और मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ मिलकर ऐसा दांव खेला जिसमें विपुल गोयल की एक न चली।
सूत्र बताते हैं कि ढाई वर्ष पहले जब सीएम को हटाने की मांग उठी थी तो उसमें विपुल गोयल ने पीछे रहकर मुखिया का किरदार निभाया था जिसकी टीस मुख्यमंत्री के मन में भी कहीं न कहीं थी। विधानसभा चुनाव की टिकट के बंटवारे में केन्द्रीय राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर के सुपुत्र देवेन्द्र चौधरी भी टिकट मांग रहे थे लेकिन कृष्णपाल गुर्जर के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था जिसे कोई नहीं भांप सका। ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री मनोहरलाल को आगे कर सीधे प्रधानमंत्री से गुहार लगाई और राजनैतिक कौशल दिखाते हुए यह समझाने में कामयाब हो गए कि उन्होंने पार्टी लाइन की नीति वशंवाद के विरूद्ध लड़ाई में वो पार्टी के साथ हैं और अपने बेटे की टिकट वो नहीं मांग रहे। इस पर प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर यह संकेत दे दिए कि यदि यह सांसद कृष्णपाल गुर्जर अपने बेटे की टिकट नहीं मांग रहे थे तो इनकी लोकसभा में आने वाली सभी विधानसभा सीटों की टिकटों पर इनकी संतुति ली जाए। बस फिर क्या था चल गया कृष्ण का चक्र और टिकट बंटवारे से ठीक एक दिन पहले विपुल गोयल और टिकट न देने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के साथ मिलकर रख दिया। अब ऐसे में प्रधानमंत्री के परामर्श की अवेहलना कौन करता जिसके चलते उद्योग मंत्री विपुल गोयल की टिकट काट दी गई। इस हालत को देखकर तो यही दोहा याद आता है कि "चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोए-दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए"
क्यों कटी यशवीर डागर की टिकट
सूत्र बताते हैं कि स्थानीय नेताओं और हरियाणा के मंत्रियों से कहीं अच्छी पकड़ यशवीर डागर की केन्द्रीय नेतृत्व में बताई जाती है। इसके साथ ही वे संघ में भी अच्छी पकड़ रखते हैं। इनकी पकड़ का यह आलम रहा कि वर्ष 2014 से 2019 के बीच मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने केवल लिक्कर (शराब) का एक ही लाईसेंस जारी किया और वो भी यशवीर डागर का था। जबकि कैबिनेट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु भी लाइसेंस की मांग कर रहे थे। सांसद कृष्णपाल गुर्जर ने भविष्य को ध्यान में रखते हुए इनकी टिकट काट दी। दूसरा मुख्य कारण जोकि राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि पिछले लगभग दो दशक से भड़ाना या तो अवतार भड़ाना के साथ या फिर चौ. महेन्द्र प्रताप के साथ खड़े नजर आए, यशवीर की टिकट काट नगेन्द्र भड़ाना को टिकट देने का मतलब कहीं न कहीं भड़ानाओं में सांसद ने अपनी पैठ बनाने का भी काम किया है। वैसे भी अवतार भड़ाना राजनैतिक ढलान पर हैं और चौधरी महेन्द्र प्रताप का यह आखिरी चुनाव हो सकता है। ऐन मौके पर भड़ानाओं को अपने पक्ष में करने का इससे बेहत्तर अवसर नहीं था। इसके चलते यशवीर डागर की टिकट काटकर नगेन्द्र भड़ाना को दे दी गई।
क्यों कटी नयनपाल रावत की टिकट
सूत्र बताते हैं कि नयनपाल रावत की टिकट संगठन द्वारा ही काटी गई है क्योंकि पिछले दो बार से यह भाजपा की टिकट पर चुनाव हार चुके हैं। वहीं सोहन पाल छौक्कर संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं और पृथला विधानसभा में जातिय समीकरण बिठाने के लिए उन्हें टिकट दे दी गई।
कुल मिलाकर यदि फरीदाबाद जिले की छह विधानसभा सीटों की बात करें तो एक टिकट नागर, एक वैश्य समाज, एक पंजाबी (महिला), एक भड़ाना, एक ठाकुर और एक ब्राह्मण को देकर जातीय समीकरण बैठाने की कोशिश की गई है। साथ ही यह सभी छह के छह प्रत्याशियों की बात की जाए तो केवल राजेश नागर को छोडक़र सभी कृष्णपाल की छत्रछाया के हैं और कृष्णपाल गुर्जर मुख्यमंत्री के साथ खड़े रहते हैं। इसलिए साफ तौर पर कहा जाए तो फरीदाबाद में इन्हीं दो पाटों ने राजनैतिक बिसात बिछाई और टिकट काटने के साथ अपने विश्वासपात्र उम्मीदवारों को टिकट दिलवा दी। अतंत: राजनैतिक विश£ेषक यही कहते हैं कि टिकट बंटवारे में कृष्ण का चक्र बखूबी चला।