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कल मामले की अंतिम सुनवाई; हिंदू पक्ष की दलील- बाबर की ऐतिहासिक भूल को सुधारने की जरूरत

October 15, 2019 05:58 PM

Star Khabre, Faridabad; 15th October : अयोध्या जमीन विवाद मामले में नवंबर के पहले हफ्ते में फैसला आ सकता है। न्यूज एजेंसी ने यह जानकारी दी है। इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि कल (16 अक्टूबर को) इस मामले की 40वीं और अंतिम सुनवाई होगी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील के पाराशरण ने कहा कि बाबर ने अयोध्या में मस्जिद बनाकर जो भूल की, उसे सुधारे जाने की जरूरत है। अयोध्या में कई (50-60) मस्जिदें हैं, जहां मुस्लिम नमाज अदा कर सकते हैं, लेकिन हिंदू भगवान राम के जन्मस्थान यानी अयोध्या को नहीं बदल सकते। इसी साल 6 अगस्त से चीफ जस्टिस की अगुआई वाली 5 जजों की बेंच में नियमित सुनवाई चल रही है।

पाराशरण सुप्रीम कोर्ट में महंत सुरेश दास की तरफ से पैरवी कर रहे हैं। सुरेश दास पर सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य द्वारा केस दायर किया गया था। पाराशरण ने कहा, ‘‘सम्राट बाबर ने भारत को जीता और उसने अयोध्या यानी भगवान राम के जन्मस्थान में मस्जिद बनवाकर ऐतिहासिक भूल कर दी। ऐसा करके उसने (बाबर) खुद को सभी नियम-कानून से ऊपर रख लिया।’’ न्यूज एजेंसी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मामले में 4-5 नवंबर को फैसला सुना सकता है।

मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने पाराशरण के जवाब पर आपत्ति जताई। धवन ने उनसे पूछा- क्या आप बता सकते हैं कि अयोध्या में कितने मंदिर है? पाराशरण ने कहा कि मैंने अपना तर्क भगवान राम के जन्मस्थान को लेकर दिया था।

एक बार जो मंदिर था, वह मंदिर ही रहेगा’

5 जजों की बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर हैं। बेंच ने पाराशरण से कई कानूनी मुद्दों कानून की सीमाएं जैसे सवाल पूछे। बेंच ने कहा, ‘‘उनका (मुस्लिम पक्ष) का कहना है कि एक बार मस्जिद हो गई, तो वह हमेशा मस्जिद ही रहेगी। क्या आप इससे सहमत हैं?’’

इस पर पाराशरण ने कहा, ‘‘मैं इसका समर्थन नहीं करता। मैं कहूंगा- एक बार कोई मंदिर बन गया, तो वह हमेशा मंदिर ही जाना जाएगा।’’

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने के लिए कहा था

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान को मिले। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

 
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