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सफर ओलंपिक ‘मशाल’ का, जिसमें विश्व के खेलों का शोला धधकता है

November 09, 2019 10:45 AM

Star Khabre, Faridabad; 09th November : टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए मैदान सजने लगा है। दुनिया भर के खिलाड़ी इसमें भाग लेने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं। टोक्यो ओलंपिक के लिए मशाल का डिजाइन लोगों के सामने पेश कर दिया गया है, चेरी ब्लासम के आकार का मशाल 26 मार्च 2020 से विश्व भ्रमण की अपनी यात्रा प्रारंभ करेगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली बार मशाल किस ओलंपिक में जलाया गया था। आइए ओलंपिक के इतिहास से जुड़ी कुछ बातें आपको बताते हैं।

विश्व में खेलों का इतिहास प्राचिन काल से ही रहा है। तब शासकों के सैनिकों के बीच कुश्ती, दौड़, मुक्केबाजी और रथ दौड़ जैसे प्रतिस्पर्धी खेल हुआ करते थे, लेकिन ओलंपिक जैसे आधुनिक खेल को शुरु करने का श्रेय फ्रांस के अभिजात पुरूष बैरों पियरे डी कुवर्तेन को जाता है।
इस ओलंपिक के पीछे उनकी सोच यह थी कि आपसी तकरार में उलझे देश शांति के साथ एक मंच पर आकर खेलों को बढ़ावा दें। इसलिए 19वीं शताब्दी में डी कुवर्तेन ने प्राचीन काल के खेलों की परंपरा को जिंदा कर एक मंच पर सजाने के शुरूआत की। कुवर्तेन की परिकल्पना के अनुरूप विश्व के इस पहले आधुनिक ओलंपिक खेल के शुरुआत हुई साल 1896 के छह अप्रैल के दिन। साल 1896 में पहली बार आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन ग्रीस की राजधानी एथेंस में हुआ।
शुरुआती दशक में ओलंपिक आंदोलन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा, क्योंकि कुवर्तेन की इस परिकल्पना को किसी भी बड़ी शक्ति का साथ नहीं मिल पाया, जिसके कारण यह एक क्रांति का रूप नहीं ले पाया। इस ओलंपिक मे 14 देशों के 241 खिलाडि़यों ने इन खेलों में भाग लिया था। 9 खेलों के 43 इवेंट इस ओलंपिक में हुए थे।
शुरूआत के सात ओलंपिक खेलों में मशाल नहीं थे। साल 1928 में आठवें ओलंपिक की मेजबानी एम्सटर्डम को मिली और यहीं से पहली बार शुरू हुआ ओलंपिक मशाल का सफर। एम्सटर्डम में सबसे पहली बार एक ऊंची मीनार पर ओलंपिक मशाल जलाई गई, जो पूरे खेलों के दौरान जलती रही।
इसके बाद से अब तक यह परंपरा जारी है, लेकिन पहली बार साल 1936 के बर्लिन ओलंपिक में पहली बार मशाल यात्रा शुरू हुई और आयोजन वाले देश के अलावा अन्य देशों में भी मशाल को घुमाया जाने लगा साल 1952 के ओस्लो ओलंपिक में मशाल ने पहली बार हवाई मार्ग से यात्रा की, 1956 के स्कॉटहोम ओलंपिक में घोड़े की पीठ पर मशाल यात्रा संपन्न हुई। 1968 के मैक्सिको ओलंपिक में मशाल को समुद्र के रास्ते ले जाया गया।
1976 के मांट्रियल ओलंपिक में कनाडा ने एथेंस से ओटावा तक मशाल के सफर का सेटेलाइट प्रसारण किया। 1994 के लिलेहैमल शीतकालीन खेलों के दौरान पैराजंपरों ने पहली बार हवा में मशाल का आदान-प्रदान किया। 2000 के सिडनी ओलंपिक में तो मशाल को ग्रेट बैरियर रीफ के पास समुद्र की गहराइयों में उतारा गया।
मशाल गैस से जलती है, समय के साथ इसके स्वरूप, रंग और इसके बनाने में उपयोग होने वाली वस्तुएं बदलती रहीं, लेकिन प्राचीन समय से लेकर आज तक इसका मूल स्वरूप नहीं बदला। 2000 में सिडनी ओलंपिक के दौरान मशाल को सिडनी ओपरा हाउस और बूमरैंग का आकार दिया गया। बीजिंग ओलंपिक में मशाल एल्यूमिनियम और मैग्नीज से मिलकर बनी,  इस मशाल को कंप्यूटर कंपनी लिनोवो के 30 डिजाइन विशेषज्ञों ने तैयार किया था। टोक्यो ओलंपिक के आयोजकों ने बताया है कि मशाल का शीर्ष हिस्सा चेरी ब्लासम के आकार का है और इसमें वहीं तकनीक इस्तेमाल की गई है जो जापान की बुलेट ट्रेन बनाने में की जाती है। टोक्यो ओलंपिक का मशाल सुनहरे गुलाब की तरह चमकदार यह टार्च 71 सेंटीमीटर लंबी और एक किलो 200 ग्राम वजन की है।
इसमें 2011 में भूकंप और सुनामी पीड़ितों के लिए अस्थायी मकान बनाने में इस्तेमाल किए गए एल्युमिनियम से निकले अपशिष्टों का इस्तेमाल किया गया है। ओलंपिक मशाल रिले फुकुशिमा से 26 मार्च 2020 को शुरू होगी जो 10 जुलाई को टोक्यो पहुंचेगी

 
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