Star khabre, Faridabad ; 10th December : पहले रोहित शर्मा, शिखर धवन और विराट कोहली थे. अब केएल राहुल, रोहित शर्मा और विराट कोहली हैं. यूं तो लिमिटेड ओवर क्रिकेट में टॉप-3 बल्लेबाजों पर जीत की नींव रखने की जिम्मेदारी होती है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि अगर टॉप-3 बल्लेबाज नहीं चले तो हार की गारंटी है. टीम इंडिया के साथ कमोबेश यही स्थिति चली आ रही है. बाहर से देखने पर ये कमी उतनी गंभीर नहीं दिखती है जितनी है. वेस्टइंडीज के खिलाफ मौजूदा सीरीज से पहले भी ये परेशानी टीम इंडिया के साथ रही है. जिसको सुधारने से पहले पहचानना जरूरी है. विराट कोहली ने सीरीज शुरू होने से पहले प्रेसकॉन्फ्रेंस में ये कहा भी था- “जब टी-20 में पहले बल्लेबाजी कर रहे हैं तो हम अच्छा नहीं कर पा रहे हैं. हम जब कम स्कोर करते हैं तो उसको डिफेंड नहीं कर पा रहे हैं. हमें इस पर काम करने की जरूरत है. वन डे और टेस्ट की तुलना में टी-20 क्रिकेट में प्रयोग ज्यादा अहम होते हैं. जो आप चाहते हैं उसको लेकर आप ज्यादा जोखिम उठाते हैं. हम अब करीब-करीब उस प्लेइंग 11 के साथ खेलते दिखेंगे जो टीम विश्व कप में खेलेगी. यहां से अब हमें प्रदर्शन को तेजी से सुधारने पर फोकस करना होगा. दो चीजों पर फोकस करना है. पहले बल्लेबाजी करने को लेकर और अपने स्कोर को डिफेंड करने पर”.
इस बयान के मायने क्या हैं
विराट के इस बयान की जड़ में है मिडिल ऑर्डर का औसत प्रदर्शन. इसी सीरीज के पहले टी-20 की बात कर लेते हैं. पहला टी-20 मैच टीम इंडिया की झोली में विराट कोहली ने डाला. विराट ने उस मैच में 50 गेंद पर 94 रनों की लाजवाब पारी खेली. लेकिन दूसरे टी-20 में भारत को 9 गेंद रहते ही 8 विकेट से हार का सामना करना पड़ा. इसकी इकलौती वजह थी कि भारतीय टीम स्कोरबोर्ड पर उतने रन नहीं जोड़ पाई जितने जुड़ने चाहिए थे. शिवम दुबे के 54 रन हटा दें तो टॉप 3 बल्लेबाजों में रोहित शर्मा, केएल राहुल और विराट कोहली में से कोई भी बल्लेबाज 20 रनों तक नहीं पहुंचा. लिहाजा टीम का कुल स्कोर 170 रनों तक ही पहुंच पाया. इन 170 रनों में से विराट कोहली ने 17 गेंद पर 19 रन बनाए. रोहित शर्मा ने 18 गेंद पर 15 रन बनाए. केएल राहुल ने 11 गेंद पर 11 रन बनाए.
अब लगे हाथ ये भी जान लीजिए कि दूसरे टी-20 मैच में भारतीय टीम के बल्लेबाज आखिरी 4 ओवर में सिर्फ 26 रन ही जोड़ पाए. दूसरे मैच में हार की एक वजह कई कैचों का छूटना भी रहा. लेकिन ये टीम इंडिया की पारंपरिक समस्या नहीं है इसलिए इसे नजरअंदाज करना होगा. एकाध मैच में इस तरह की गलतियां हो जाती हैं.
मिडिल ऑर्डर की कमजोरी दिखती है
भारतीय टीम की परेशानी ये है कि बल्लेबाजी में मिडिल ऑर्डर में ना धोनी हैं और ही हार्दिक पांड्या. हार्दिक पांड्या तो 2020 विश्व कप तक आ जाएंगे. लेकिन धोनी की स्थिति साफ नहीं है. इन दोनों खिलाड़ियों की गैरमौजूदगी में फिनिशर की जिम्मेदारी के लिए कोई तैयार होता नहीं दिख रहा है. फिलहाल श्रेयस अय्यर, ऋषभ पंत, शिवम दुबे और रवींद्र जडेजा जैसे खिलाड़ियों के बलबूते टीम विश्व कप खेलने उतरती दिख रही है. पिछले मैच में विराट कोहली ने अपनी जगह शिवम दुबे को नंबर तीन पर बल्लेबाजी करने के लिए भेजा लेकिन ये प्रयोग वो नियमित तौर पर करेंगे ऐसा लगता नहीं है. थोड़ी देर के लिए आपको इसी साल खेले गए 50 ओवर के विश्व कप की याद ताजा कराते हैं. ज्यादा पुरानी बात नहीं है. पूरे विश्व कप में हार्दिक पांड्या को छोड़ दें तो बाकि सभी मिडिल ऑर्डर बल्लेबाजों का स्ट्राइक रेट 80 के आस पास आकर टिक गया था. पाकिस्तान के खिलाफ जिस मैच में साढ़े तीन सौ रन बनने चाहिए थे वो नहीं बने. अफगानिस्तान के खिलाफ विराट के आउट होते ही स्थिति गंभीर हो गई थी. सेमीफाइनल में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ हार की वजह टॉप 3 बल्लेबाजों का ना चलना ही था. इन्हीं मैचों में विराट कोहली के लिए सबक छुपा हुआ है. मिडिल ऑर्डर के दो बल्लेबाजों को अभी से फाइनल करके उन्हें स्थायित्व देना होगा, भरोसा देना होगा कि अब से लेकर टी-20 विश्व कप तक उनकी जगह टीम में सुरक्षित है. वो अपना स्वाभाविक खेल खेलें. टीम में जगह बचाने के लिए ना सोचें. ये विश्वास देकर ही विराट मध्यक्रम का भला कर सकते हैं. वरना टॉप 3 बल्लेबाजों के कंधे कभी ना कभी कमजोर होंगे ही और फिर मध्यक्रम उसका बोझ बिल्कुल ही नहीं उठा पाएगा.