Star Khabre, Business; 06th February : साल 2019 में रेपो रेट के रिकॉर्ड पांच बार लगातार कटौती करने के बाद रिजर्व बैंक नए वित्त वर्ष की शुरुआत सख्त फैसलों के साथ कर सकता है। थोड़ी ही देर में आरबीआई बड़ा एलान करेगा, जिसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ेगा। विश्लेषकों का अनुमान है कि 2020-21 में राजकोषीय घाटा बढ़ने के दबाव के कारण आरबीआई रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है। सरकार ने आगामी वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.5 फीसदी रखा है।
वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को किया संशोधित
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बार फिर संशोधित कर दिया है और इसे पूर्व के लक्ष्य से 0.5 फीसदी बढ़ाकर 3.8 फीसदी कर दिया है। यह लगातार तीसरा साल है जब सरकार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से चूक रही है। इसे देखते हुए बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच (बोफाएमएल) ने सरकार के लक्ष्य पर एक बार फिर संकट जताया है, जो तय लक्ष्य से 0.30 फीसदी तक ऊपर जा सकता है। गोल्डमैन सॉक्स ने कहा है कि सरकार को अभी लक्ष्य के मुताबिक राजस्व की वसूली नहीं हो पा रही है, जो उसके खर्च में कटौती का कारण बन सकता है। साथ ही उस पर बढ़ती महंगाई का दबाव भी है, जो आरबीआई के अनुमानित लक्ष्य से ऊपर जा चुकी है। सॉक्स के साथ सिंगापुर के निवेश बैंक डीबीएस ने भी कहा है कि आगामी एमपीसी बैठक में रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति में बदलाव कर सकता है।
थोड़ी देर में आएगा फैसला
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक चार फरवरी को शुरू हो गई थी। मौद्रिक नीति समिति छह फरवरी को फैसला लेगी। इसमें रेपो रेट पर कोई फैसला करते समय खुदरा महंगाई को ध्यान में रखा जाएगा, जो पांच फीसदी से ज्यादा पहुंच चुकी है। जनवरी में खुदरा महंगाई के 6.7 फीसदी पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है।
जीडीपी के आंकड़ों पर भी नजर
इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक ने दिसंबर में जीडीपी का अनुमान घटा दिया था। आरबीआई ने जीडीपी का अनुमान जताया था, जिसके अनुसार, साल 2019-20 के दौरान जीडीपी में और गिरावट आएगी और यह 6.1 फीसदी से गिरकर पांच फीसदी पर आ सकती है। इससे अर्थव्यवस्था को झटका लगा था।
4.5 फीसदी पर भारत की जीडीपी
इससे पहले जारी किए गए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों से अर्थव्यवस्था में सुस्ती गहराने के संकेत मिले हैं। जुलाई-सितंबर, 2019 की तिमाही के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर घटकर महज 4.5 फीसदी रह गई, जो लगभग साढ़े छह साल का निचला स्तर है। यह लगातार छठी तिमाही है जब जीडीपी में सुस्ती दर्ज की गई है।