Star Khabre, Haryana; 16th February : राेहतक पीजीआई में चिकित्सीय लापरवाही के मामले में 35 वर्षीय महिला ने 4 साल डॉक्टरों के खिलाफ लड़ाई लड़कर न्याय हासिल किया है। दरअसल, 2015 में रामगोपाल कॉलोनी निवासी व एमडीयू में महिला लैब टेक्नीशियन मीनाक्षी श्योराण के दाएं हाथ से गांठ निकालने की जगह डॉक्टरों ने नर्व सिस्टम से जुड़ी नस को ही काट दिया। इससे महिला के हाथ ने काम करना बंद कर दिया। बाद में निजी अस्पताल में डेढ़ लाख रुपए खर्च कर दोबारा ऑपरेशन करवाया। तब डॉक्टरों ने गलती मानने की बजाय दुर्व्यवहार किया तो महिला ने डिस्ट्रिक कंज्यूमर फोरम का दरवाजा खटखटाया। तब महिला का केस कमजोर करने के लिए डाॅक्टरों ने उसका 7% विकलांगता सर्टिफिकेट बना दिया। पीड़िता ने बाद में पीजीआई चंडीगढ़ से मेडिकल करवाया गया तो विकलांगता 21 फीसदी साबित हुई। डिस्ट्रिक फोरम का फैसला बरकरार रखते हुए अब स्टेट फोरम ने भी महिला को 4 लाख रुपए मुआवजा देने का फैसला सुनाया है। रोहतक की कंज्यूमर कोर्ट में अब भी चिकित्सीय लापरवाही के 15 मामले चल रहे हैं।
पीड़िता बोली- डाॅक्टरों ने कहा था कि हम काटेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे?
मैं 2015 में एमडीयू से एमए समाजशास्त्र की पढ़ाई कर रही थी। तभी दाएं हाथ में बनी छोटी सी गांठ निकलवाने के लिए 30 जनवरी 2015 को पीजीआईएमएस पहुंची। 13 मार्च को सर्जरी विभाग की प्रोफेसर डाॅ. नित्याशा के कहने पर पीजी स्टूडेंट डाॅ. राजू रंजन ने हाथ का ऑपरेशन माइनर ओटी में ही कर दिया। जब हाथ ने काम करना बंद कर दिया और दर्द बढ़ता गया तो 4 दिन बाद दोबारा पीजीआई गई। यहां किसी ने सीधे मुंह बात तक नहीं की। मैं फिर 7 अप्रैल 2015 को मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम पहुंची। आखिर में पारस हॉस्टिपल में डेढ़ लाख रुपए खर्च कर एक और आॅपरेशन करवाया। मुझे पहली बार परीक्षा में राइटर से पेपर लिखवाना पड़ा। मैं न तो खाना बना पाती थी और न ही वजन उठा पाती थी। बाद में अपनी एडवोकेट किरण श्योराण के जरिए कंज्यूमर फोरम में हेल्थ यूनिवर्सिटी, पीजीआई निदेशक, चिकित्सा अधीक्षक, सर्जरी विभाग के तत्कालीन हेड डाॅ. एमएस ग्रिवान, सर्जरी की प्रोफेसर डाॅ. नित्याशा और पीजी स्टूडेंट डाॅ. राजू रंजन के खिलाफ शिकायत डाली।
डॉक्टरों ने मुझे हर कदम पर हराने का प्रयास किया। पहली बार सिविल सर्जन की ओर से मेडिकल में भी मात्र 7 फीसदी ही हाथ की विकलांगता बताई गई, जबकि इसी मेडिकल को पीजीआई चंड़ीगढ़ से करवाया गया तो वहां से 21 फीसदी विकलांगता का सर्टिफिकेट दिया गया। इसी आधार पर डिस्ट्रिक कंज्यूमर फोरम रोहतक ने 8 अगस्त 2019 को फैसला सुना दिया। इसमें उपरोक्त सभी मेडिकल खर्च, मानसिक परेशानी व कानूनी खर्च के तौर पर कुल 4 लाख रुपए मुआवजा देने के आदेश दिए। बाद में स्टेट फोरम ने भी डिस्ट्रिक फोरम के फैसले पर ही मुहर लगा दी। मुझे हाथ की नस कटने से ज्यादा चिकित्सकों का बर्ताव चुभ रहा था। डॉक्टरों ने धमकाकर भगाकर कहा था कि हम काटेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे?।