Star Khabre, Chandigarh ; 19th November : हरियाणा में छात्र राजनीति का लंबा इतिहास रहा है। राज्य के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से कई ऐसे छात्र नेता निकले, जिन्होंने अपनी धमक और कौशल के बूते हरियाणा और देश की राजनीति में सफल मुकाम हासिल किए। कोई विधायक बना तो किसी ने सांसद और मंत्री बनकर देश-प्रदेश की राजनीति में पूरा दखल बनाया। लेकिन, पिछले 21 साल से राजनीति की प्राथमिक पाठशाला समझे जाने वाले छात्र संघ चुनाव बंद हैं। अब एक बार फिर राज्य में छात्र संघ के चुनाव कराने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। ऐसे में सरकार दबाव में है और छात्र संगठन उत्साह में।
हरियाणा में छात्र राजनीति का लंबा इतिहास, छात्र संघ चुनाव की राजनीति में कई हत्याएं हो चुकीं
प्रदेश में पिछले 21 साल से छात्र संघ के चुनाव पर रोक लगी हुई है। इस पर रोक लगाए जाने के समय हरियाणा में हविपा-भाजपा गठबंधन की सरकार थी और मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल थे। अब फिर छात्र संघ के चुनाव आरंभ करने की प्रक्रिया शुरू हुई है, लेकिन चुनाव कराने के प्रारूप पर सरकार और छात्र संगठन आमने सामने आ गए है। सरकार कालेजों में खून-खराबे की आशंका जताते हुए यह चुनाव आनलाइन चुनाव कराने के हक में है। दूसरी अर, छात्र संगठन इस प्रक्रिया को स्वीकार करे को तैयार नहीं हैं।
आनलाइन चुनाव प्रक्रिया पर फंसा पेंच, सरकार और छात्र संगठन आमने सामने
दरअसल, हरियाणा में छात्र राजनीति के कई सुखद पहलू है तो दागदार पहलू भी कम नहीं है। प्रदेश के विश्वविद्यालयों और कालेजों के कैंपस युवाओं के खून से रंगे हुए है। करीब एक दर्जन छात्र नेताओं की हत्या और हर जिले में मुकदमेबाजी से आजिज तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने 1996 में छात्र संघ के चुनाव पर रोक लगा दी थी। तब से छात्र राजनीति हाशिए पर है। इन 21 सालों में पिछले तीन साल को छोड़ कर राज्य में कांग्रेस और इनेलो की सरकारें रहीं। दोनों पार्टियों के छात्र संगठन लगातार अपनी सरकारों से छात्र संघ के चुनाव कराने की मांग करते रहे, लेकिन कोई पार्टी छात्र संघ के चुनाव बहाल करने का साहस नहीं जुटा पाई।
भाजपा ने 2014 में अपने चुनाव घोषणा पत्र में छात्र संघ के चुनाव बहाल करने का वादा किया था। अब 2017 है। तीन साल बाद मनोहर सरकार राज्य में छात्र संघ के चुनाव कराने को तो राजी हो गई, लेकिन चुनाव के प्रारूप पर पेंच फंस गया है। इस माह के अंत तक नए सिरे से बैठक कर सरकार और छात्र संगठन चुनाव के प्रारूप पर सहमति बनाने की कोशिश कर सकते है।
छात्र संघ के चुनाव में नया प्रयोग
प्रदेश के शिक्षा मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा ने चार सदस्यीय कमेटी की सिफारिश पर इसी शिक्षण सत्र (2017-18) के अगले सेमेस्टर में कुछ विश्वविद्यालयों व कालेजों में आनलाइन चुनाव प्रक्रिया अपनाने का प्रयोग करने की बात कही है। यह प्रयोग सफल रहा तो अगले सत्र 2018-19 से सभी कालेजों व विश्वविद्यालयों में आनलाइन ही चुनाव होंगे। इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिग्विजय सिंह चौटाला और एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष संदीप बूरा इस चुनाव प्रक्रिया के हक में नहीं है। चौटाला के नेतृत्व में तो एमडीयू रोहतक में तालाबांदी भी की जा चुकी है।
तीन वीसी और एक रजिस्ट्रार की कमेट
सरकार ने छात्र संघ के चुनाव के प्रारूप की सिफारिश के लिए जो कमेटी बनाई थी, उसमें गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय (हिसार) के कुलपति डा. टंकेश्वर प्रसाद, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपतिडा. केसी शर्मा, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (रोहतक) के कुलपति डा. वीके पुनिया और रेवाड़ी के मीरपुर की इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार मदन लाल गोयल शामिल है। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट को दे दी है, जिसके आधार पर सरकार चुनाव कराने को तैयार हुई है।
एबीवीपी से राष्ट्रीय फलक पर छाई सुषमा स्वराज
केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हरियाणा की छात्र राजनीति की देन हैैं। 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ हरियाणा में राजनीतिक करियर की उन्होंने शुरुआत की। 25 वर्ष की उम्र में ही हरियाणा में मंत्री बनीं। 1990 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बनीं।1996 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतीं। फिर दिल्ली की मुख्यमंत्री, केंद्र में सूचना-प्रसारण मंत्री, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, लोकसभा में विपक्ष की नेता और अब मौजूदा मोदी सरकार में विदेश मंत्री है।
दो छात्र नेताओं ने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को हराया
हरियाणा के दो बड़े छात्र नेताओं धर्मवीर सिंह (भिवानी से मौजूदा भाजपा सांसद) और प्रो. छत्रपाल (कांग्र्रेस छोड़कर भाजपा में आए) ने दो बड़े राजनेताओं को चुनाव में पराजित कर दिया था। 1987 में तोशाम हलके से धर्मवीर ने सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल को हराया था, जबकि 1991 में पूर्व मंत्री प्रो. छत्रपाल ने पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल को घिराव से चुनाव हराया था।
हरियाणा की छात्र राजनीति ने पैदा किए कई नेता
हरियाणा की छात्र राजनीति ने कई बड़े नेताओं को जन्म दिया है। सुषमा स्वराज और भूपेंद्र सिंह हुड्डा सहित कई दिग्गजों के अलावा कई अन्य नेताओं ने भी राज्य की राजनीति में नाम कमाया। इनमें पूर्व मंत्री देवेंद्र शर्मा, पूर्व मंत्री निर्मल सिंह, पृथ्वी सिंह, सीपीएम नेता इंद्रजीत सिंह, पूर्व सीपीएस राव दान सिंह, पूर्व मंत्री एवं विधायक कर्ण सिंह दलाल, छात्र नेता संपूर्ण सिंह, पूर्व मंत्री प्रो. छत्रपाल सिंहऔर पूर्व सांसद जयप्रकाश जेपी शामिल है।
1974 से पहले चुने जाते थे क्लास प्रतिनिधि
हरियाणा में 1974 से पहले इनडायरेक्ट (अप्रत्यक्ष) चुनाव होते थे। स्कूलों में कक्षाओं में कक्षा प्रतिनिधि चुने जाते थे। कक्षा प्रतिनिधिइकट्ठा होकर कालेज और विश्वविद्यालय प्रधान तथा बाकी पदाधिकारियों का चयन करते थे। 1974 में बैलेट के जरिए चुनाव होने लगे। इमरजेंसी लगते ही 1975 में चुनाव बंद हो गए। 1977 में चौधरी देवीलाल ने बैलेट प्रक्रिया से फिर छात्र संघ के चुनाव आरंभ करा दिए। 1996 में हविपा-भाजपा गठबंधन की सरकार में चौ. बंसीलाल ने छात्र संघ के चुनाव बंद कर दिए।
1970 के बाद हो चुके एक दर्जन से ज्यादा कत्ल
1970 के बाद प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कई कत्ल हो चुके। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में मक्खन सिंह, जसबीर सिंह, एमडीयू रोहतक में देश के इतिहास में पहली बार दो बार चुनाव जीतने वाले देवेंद्र कोच, रवींद्र बालंद, सुभाष चंद रोहिला के कत्ल हुए। हिसार में पहलवान हत्याकांड भी सुर्खियों में रहा। कोई जिला ऐसा नहीं था, जहां मुकदमेबाजी नहीं हुई। इसलिए सरकारें छात्र चुनाव से डरती रहीं।
' हम नहीं चाहते खून खराबा हो इसलिए सहयोग करें संगठन'
'' हमारी सरकार छात्र संघ के चुनाव कराने का वादा पूरा कर रही है। हमें बच्चों की सुरक्षा की भी चिंता करनी है। लिंगदोह कमेटी की सिफारिश के आधार पर चार सदस्यीय कमेटी ने विभिन्न सुझाव दिए हैैं। हम पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर कुछ संस्थानों में आनलाइन (आइटी आधारित) चुनाव प्रक्रिया इस सत्र के आने वाले सेमेस्टर से अपना रहे है। फिर फुलफ्लैश चुनाव होंगे। छात्र संगठनों को इसमें सहयोग करना चाहिए।
- प्रो. रामबिलास शर्मा, शिक्षा मंत्री, हरियाणा।