Shikha Raghav, Faridabad; 03rd March : आर्थिक तंगी की मार झेल रहे नगर निगम अधिकारी अरबों रुपए का कर वसूली घोटाला कर रहे हैं। नगर निगम के अनुसार शहर के रिहायशी क्षेत्रों में चल रही सभी वर्कशॉप व कारखाने अवैध रूप से संचालित हैं। जबकि शहर के इन्हीं रिहायशी क्षेत्रों में हजारों की तादाद में वर्कशॉप व कारखाने चल रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि निगम अधिकारियों को इन सब वर्कशॉप व कारखानों के बारे में जानकारी है लेकिन उसके बावजूद वह उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे। जानकारों का कहना है कि निगम अधिकारी व कर्मचारी उक्त वर्कशॉप व कारखाना मालिकों से वर्कशॉप व कारखाने की एवज में मोटी रकम उगाही के रूप में वसूलते हैं। आंकड़ो में अगर बात की जाए तो इन कारखाने और वर्कशॉप के गोल माल से निगम को अरबों रुपए के रिवेन्यू का घाटा हो रहा है।
क्या है नियम
नियमानुसार नगर निगम अधिनियम 1994 की धारा 330 के तहत हर छोटे बड़े अधिकृत क्षेत्र में लाइसेंस प्राप्त करके वर्कशॉप या कारखाना लगाने का प्रावधान है लेकिन उसके बावजूद शहर के विभिन्न रिहायशी क्षेत्रों में हजारों की संख्या में औद्योगिक वर्कशॉप व कारखाने चल रहे हैं जिनसे निगम अधिकारी अवैध रूप से कर वसूली कर रहे हैं।
क्या है मामला
इस पर आरटीआई के जबाव में नगर निगम ने उत्तर दिया कि स्टाफ की कमी के कारण उन्होंने पिछले छह वर्षों से शहर में कितनी वर्कशॉप और कारखाने चल रहे हैं, इस बारे में कोई सर्वे नहीं कराया गया। इस कारण उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि निगम क्षेत्र में कितनी वर्कशॉप व कारखाने चल रहे हैं। इसके अलावा निगम क्षेत्र में संचालित वर्कशॉप कारखानों के पंजीकरण व रिन्यू का भी कोई उत्तर नहीं दिया।
कैसे हो रहा है अरबो रुपए के कर का घोटाला
एक अनुमान के तौर पर फरीदाबाद जिले के रिहायशी क्षेत्र में छोटी-बड़ी सभी वर्कशॉप और कारखानों का सर्वे किया जाए तो लगभग एक लाख वर्कशॉप और कारखाने मिल जाएंगे। अब इन वर्कशॉप या कारखानों का पंजीकरण किया जाए तो नए कारखाने और वर्कशॉप के पंजीकरण की फीस 800 रुपए से लेकर 10,000 रुपए हैं। यह फीस वर्कशॉप और कारखाने की टर्नओवर के आधार पर ली जाती है। अनुमानित तौर पर यदि प्रत्येक कारखाने से मात्र 2000 रुपए भी प्रतिवर्ष लिया जाए तो 2000 गुना एक लाख। यानि 20 करोड़ रुपए। अब यदि 6 वर्षों का जोड़ा जाए तो 20 करोड़ गुना 6। यानि एक अरब 20 करोड़ रुपए। यह तो सिर्फ वह राशि हैं तो मात्र छह वर्षों की अनुमानित राशि है। जबकि उक्त वर्कशॉप और कारखानें लंबे अर्सें से चले आ रहे हैं। अब मुद्दे वाली बात यह है कि इस पूरे गणित पर निगम अधिकारी यह कहकर पल्ला झाड़ लेंगे कि वह रिहायशी क्षेत्रों में वर्कशॉप और कारखाने का पंजीकरण कर ही नहीं सकते तो कैसे कर दें। इसलिए यह कर वसूला ही नहीं जा सकता।
अब सवाल यह उठता है कि नियमानुसार जब रिहायशी क्षेत्रों में वर्कशॉप और कारखानों को लाइसेंस दिया ही नहीं जा सकता और वर्कशॉप और कारखाने खोल ही नहीं सकते तो बिना निगम अधिकारियों की मर्जी के वह धड़ल्ले से कैसे चल रही हैं। शहर के प्रत्येक रिहायशी क्षेत्र की कालोनियों में प्रत्येक गली में दो से तीन वर्कशॉप व फैक्ट्रियां चल रही हैं। निगम अधिकारियों द्वारा उन्हें बंद क्यों नहीं कराया जा रहा। विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि निगम अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से ऐसे वर्कशॉप और मालिकों से अंदरखाते सेटिंग कर कर वसूल लेते हैं और निगम को अरबों रुपए के कर के रूप में होने वाली आय का चूना लगा रहे हैं।
मुख्यमंत्री ढूंढ रहे आय के साधन
हाल ही में एक बैठक के दौरान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सभी विभागों के आला अधिकारियों को यह आदेश पारित किया था कि सभी अपने अपने विभागों की एक रिपोर्ट तैयार करें कि किस प्रकार आय वृद्धि की जा सकती है। ताकि सरकार की आय में वृद्धि हो और प्रदेश का विकास हो सके। वहीं नगर निगम अधिकारी निगम आय के साधनों को बढ़ाने की बजाए अपनी आय बढ़ाने में लगे हुए हैं।
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