Star khabre, Faridabad; 18th February : सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेला जहां देश-विदेश के शिल्पकारों के हुनर को विश्वभर में पहचान दिलवा रहा है। वहीं मानव सभ्यता के विकास से जुड़ी संस्कृति को भी पुनर्जीवित कर रहा है। ऐसी ही प्राचीन सभ्यताओं में से झारखंड की सदियों पुरानी सोहराई कला और खोवर चित्रकारी पर्यटकों के मन को मोह रही है। मेला में बनाए गए झारखंड परिसर में शिल्पकारों और चित्रकारों की कला लोगों के मन को मोह रही है।
झारखंड परिसर में अस्थाई दीवारों को सोहराई कला और खोवर चित्रकारी से काफी आकर्षक बनाया है। सोहराई और खोवर भारत के पूर्वी भाग में, विशेष रूप से झारखंड के हजारीबाग जिले में प्रचलित दीवार चित्रकला या भित्ति चित्र की आदिवासी विधियां है। इसके अलावा झारखंड के शिल्पकारों द्वारा चित्रकारी से उकेरे गए मिट्टी के बर्तन और अन्य उत्पाद भी पर्यटकों को काफी आकर्षित कर रहे हैं। इसके अलावा पर्यटक झारखंड परिसर में प्रदर्शित किए गए प्राचीन मंदिरों, पार्कों और वन्यजीव अभयारण्य के बारे में भी खूब जानकारी ले रहे हैं। इनमें राधा-कृष्ण मंदिर बंशीधर, भद्रकाली मंदिर, कोलेश्वरी मंदिर, हरिहर धाम, सूर्य मंदिर व पार्श्वनाथ मंदिर व नेतरहाट, चीतों के लिए प्रसिद्ध बेटला नेशनल पार्क, जलसर पार्क, तपोवन आदि के संबंध में झारखंड पवेलियन में विस्तार से प्रदर्शनियों के माध्यम जानकारी दी गई है।
झारखंड की सोहराई कला और खोवर चित्रकला कर रही आकर्षित
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