Shikha Raghav, Faridabad; 30th January : दिल्ली के ठग और सपनों के सौदागर फिल्मों के नाम को चरितार्थ करने वाले बीपीटीपी बिल्डर पर जिला पुलिस कब शिकंजा कसेगी, इसका इंतजार 2900 परिवार पिछले दो साल से कर रहे हैं। पुलिस, जिला प्रशासन और सरकार को अनेक बार लिखित में शिकायत करने के बावजूद आज भी 2900 परिवार न्याय के लिए इनकी ओर टकटकी लगाए बैठे है लेकिन सरकारी ढर्रें और आम लोगों की गुहार पर सुनवाई न करने की आदत से मजबूर अधिकारियों को उनकी आंखे नजर नहीं आ रही। आला अधिकारियों को इन 2900 परिवारों का दर्द भी दिखाई नहीं दे रहा है जिन्होंने लगभग 22 लाख रुपए कीमत अदा कर दी है लेकिन उसके बावजूद उनके सिर पर आज छत नहीं है और वह छत पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
क्या है बीपीटीपी मामला
वर्ष 2009 में गुडगांव से एक सपनों का सौदागर फरीदाबाद आया जिसका नाम काबुल चावला (मन्नू चावला) है। काबुल चावला का साथ देते हुए सपनों को बेचने बाजार में सुधांशु त्रिपाठी, अनुपम बंसल, दीपेन्द्र सिंह लांबा, राकेश नारंग, पीटर जेम्स तथा किस्टोफर जॉन निकोलस नामक व्यक्ति आ गए। इन सभी ने मिलकर वर्ष 2009 में बीपीटीपी पार्क एलीट के नाम से लगभग 4100 फ्लैटों की बुकिंग लेनी शुरू कर दी। सपने ऐसे दिखाए कि 4100 परिवारों ने अपने सपने (फ्लैट) खरीदने के लिए इनके पास बुकिंग कर दी जिसमें पहले साल ही सपना (फ्लैट) खरीदने वालों से लगभग 9 लाख रुपए ले लिए गए और यह कहा गया कि आपका यह सपना (फ्लैट) 2012 में आपके हवाले कर दिया जाएगा। अभी ठीक से साल भी नहीं बीता था कि कंपनी ने सभी निवेशकों से यह कहकर और पैसे मांगे कि जितनी जगह हम आपको दे रहे थे, वह बिल्ट अप एरिया बढा दिया गया है। अब निवेशक मरता क्या न करता। उसने उनकी इस शर्त को भी मान लिया और अपनी अदायगी समय समय पर करता रहा। शिकायतकर्ताओं का यह भी कहना है कि कई बार एग्रीमेंट बदले गए परन्तु हम निवेश कर चुके थे, जिसके चलते उनकी बातें मानना हमारी मजबूरी थी।
मौजूदा स्थिति यह है कि अब वह फ्लैट जो कि निवेशकों ने लगभग 26 लाख में बुक कराया था वहीं फ्लैट अब उन्हें लगभग 30 लाख में पड़ रहा है। लाखों रुपए की कीमत बिल्डर द्वारा बढ़ा देने के बावजूद अभी तक निवेशकों को फ्लैट नहीं दिए गए हैं। हालात यह है कि 2012 में मिलने वाला फ्लैट आज तक 4100 परिवारों में से सिर्फ 1200 परिवारों को ही मिल पाया है। जबकि शेष 2900 परिवार कीमत अदा करने के बावजूद अभी भी अपना सपना पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं।
2014 तक जब इन्हें फ्लैट की पोजेशन नहीं मिली तो इन परिवारों ने आला अधिकारियों के पास गुहार लगाई और उन्हें सपनों के सौदागर के खिलाफ लिखित शिकायत दी। इतना ही नहीं इसके बाद लगातार वह इन आला अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर भी काटते रहे लेकिन स्थिति ढाक के तीन पात वाली ही बनी रही। न तो बिल्डर के खिलाफ प्रशासन ने कोई एक्शन लिया गया और न ही बिल्डर से इन्हें फ्लैट मिले। आला अधिकारियों के कार्यालय में जाने पर इन परिवारों को मिला तो सिर्फ आश्वासन।
हैरानी वाली बात यह है कि लगभग दो साल बीत जाने के बाद भी आज तक प्रशासनिक अधिकारियों से इन्हें आश्वासन ही मिल रहा है। इसके पीछे पुलिस और जिला प्रशासन से लेकर सरकार तक बिल्डर की मोटी साठगांठ है, इस बात का पता परिवारों जनों को है लेकिन उसके बावजूद वह प्रशासनिक अधिकारियों से आज तक न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। आगामी 4 फरवरी को भी एक बार फिर लगभग 100 परिवार एकत्रित होकर पुलिस कमिश्रर के पास इन बिल्डरों के खिलाफ लिखित शिकायत करने जा रहे हैं।
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कौन है काबुल चावला, कब लगेगी सपनों के सौदागरों पर रोक