Star Khabre, Faridabad; 07th August : मंगलवार रात करीब 11 बजे बीसी बाजार में पॉली क्लीनिक के ऊपर बने घर में डॉ. गुलशन राय शर्मा का परिवार सो चुका था। जब परिवार के परिचित महेश का फोन आया। डॉ. राय हड़बड़ा कर उठे। महेश ने बताया ये क्या खबर आ रही है, बहनजी के बारे में। टीवी ऑन किया तो सभी चैनल भाजपा के तेजतर्रार नेत्री सुषमा स्वराज के हमेशा के लिए खामोश हो जाने की खबरें दे रहे थे।
राय इन खबरों पर भरोसा करना नहीं चाहते थे, तभी शहर के काफी लोग सुषमा के इस पैतृक निवास पर इक्ट्ठा हो चुके थे। 15 मिनट में ही राय अपनी पत्नी और सुषमा के राखी-बांध भाई राजसिंह के साथ अपनी कार में बैठकर दिल्ली रवाना हो गए। हाथ जोड़कर इतना ही कहा, हमें तो खुद नहीं पता ये क्या हो गया। आधी रात को सारे शहर में खबर फैल चुकी थी कि अंबाला की बेटी सुषमा नहीं रहीं।
छठी में ही भाषण प्रतियोगिताओं में छा गईं थी: कमलेश
स्कूल में सुषमा की सहपाठी रहीं कमलेश शर्मा बताती हैं कि मैं छठी कक्षा में एसडी स्कूल में पढ़ती थी, जब पहली बार दो चोटियां बांधे एक नई लड़की अपनी क्लास में देखी। पता चला कि वो रजमन बाजार स्कूल से पांचवीं पास करके आई और खूब होशियार है। कुछ ही दिनों में वो भाषण देने की प्रतियोगिताओं में भाग लेनी लगी। जब बोलती थी तो लोग सुनते रह जाते थे। नाच-गाने समेत स्कूल की कोई भी कल्चरल प्रतियोगिता अब उसके बिना अधूरी थी। हमारी शांता बहनजी (टीचर) तो हमेशा उसकी पीठ ठोंकती रहतीं थी। सुषमा की मां की बचपन में ही मौत हो गई थी, तब वो नाना-नानी के पास रहने लगी थी। छोटी उम्र में ही बीसी बाजार में अपने नाना के देसी दवाखाना में भी बैठ जाती थी।
अम्बाला का हाउसिंग बोर्ड बहनजी की देन, खुद लोगों को बैंकों से लोन दिलवा मकान बनवाए थे
राजसिंह कहते हैं कि बहनजी जब 1977 में राजनीति में उतरीं तब 25 साल की थी और प्रचार के दौरान लोग उन्हें बच्ची या बेटी कहते थे। लेकिन उन्होंने इतना ग्राउंड स्तर पर प्रचार किया कि जिससे भी मिलतीं अपना मुरीद बना लेतीं थी। भिखारियों और गरीबों को भी झप्पी डालकर मिलती थी। प्रचार के दौरान ही मेरी उनसे मुलाकात हुई। उसके बाद तो राखी बांध भाई का रिश्ता बन गई। करीब 42 साल में कोई ऐसा मौका नहीं गया जब उन्होंने मुझे राखी न बांधी हो। कहीं भी रहें, अम्बाला जरूर पहुंचती थी।
अम्बाला कैंट की हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी उन्हीं की देन है। जब वे हाउसिंग मिनिस्टर थी तो यहां कॉलोनी पास कराई। तब लोगों को मकान के लिए 30-30 देने थे और बहन जी को प्रयासों से 300-300 रुपए का लोन बैंक मिला। उनके पहली बार विधायक बनने से लेकर आखिरी बार मंत्री बनने तक, हमेशा मुझे फर्स्ट पीए के तौर पर रखा। मैंने बहन से कभी तनख्वाह नहीं ली। अब जब दूसरी बार मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लीं, उस दिन मैं दिल्ली में बहनजी की कोठी पर ही था। उन्होंने मंत्री न बनने का फैसला लिया था लेकिन उन्हें कोई रंज नहीं था।
राजनीति में हुई एंट्री : फर्नांडिस राजनीति में लाए, 1977 में वरिष्ठ नेता आनंद को हराया
राजनीति विज्ञान और संस्कृत विषयों के साथ कैंट के एसडी कॉलेज से बीए की। तीन वर्षों तक एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ सैनिक छात्रा घोषित हुईं। चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी की। उसकी बार चंडीगढ़ के स्वराज कौशल के साथ शादी की। हालांकि 1970 में छात्र नेता के रूप में उनकी पहचान बनी थी। छात्र संघ का चुनाव भी जीता। लेकिन राजनीति में एंट्री हुई जॉर्ज फर्नांडिस की वजह से। फर्नांडिस की सुषमा के पति स्वराज कौशल के साथ अच्छे संबंध थे। उनके प्रयासों से 1977 में सुषमा को कैंट विधानसभा सीट से जनता पार्टी का टिकट मिला। तब वो शहर में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता देवराज आनंद को हराकर 25 साल की उम्र में ही विधायक बन गईं। सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री का रिकॉर्ड बनाया।
आखिरी मुलाकात: 18 दिसंबर को अम्बाला आईं तो खूब पकवान चखे
18 दिसंबर को ही सुषमा स्वराज कुरुक्षेत्र में गीता जयंती समारोह में हिस्सा लेने के बाद अम्बाला में अपने भाई डा. गुलशन से मिलने के लिए आईं थी। करीब एक घंटे तक वह रेजिमेंट बाजार स्थित पैतृक निवास पर रूकीं। इस दौरान उन्होंने अम्बाला के पकवानों का जमकर लुत्फ भी उठाया था। उन्होंने गाजर का हलवा, भल्ले एवं अन्य पकवान खाए थे। यहां पर भी भाजपा के पुराने नेताओं का हुजूम था जिनसे मिलने के बाद वह सीधा कैंट पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस पहुंचीं। जहां पर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने उनका स्वागत किया था। सुषमा स्वराज गुलाबी रंग की साड़ी व गुलाबी शॉल ओढ़े सुषमा स्वराज ने कई पुराने चेहरों को पहचाना भी। उन्होंने कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज उठाने और जमकर मेहनत करने का आह्वान भी किया था। सुषमा स्वराज के भाई के अलावा उनकी एक बहन वंदना शर्मा हैं जोकि इस समय चंडीगढ़ में हैं।
अम्बाला से गईं तो विज को मिली थी राजनीतिक विरासत
1977 में सुषमा स्वराज ने 4 बार के विधायक रहे देवराज आनंद को हराया था। उसके बाद 1987 में फिर कैंट की विधायक बनीं। हालांकि 1990 में इस्तीफा दिया तो उपचुनाव में 10 माह के लिए अनिल विज विधायक बने थे। सुषमा को करनाल लोकसभा सीट से सफलता नहीं मिली। उन्हें लगातार चिरंजीलाल शर्मा ने हराया। बाद में वे केंद्र की राजनीति में चलीं गईं। राजनीति के पुराने लोग बताते हैं कि सुषमा अम्बाला से जाते वक्त विज के कंधे पर हाथ रख कर गईं थी।