Star Khabre, Haryana; 19th January : हरियाणा की नगर निगमों के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को अब टैक्स भरने के लिए तैयार रहना होगा। चूंकि इन नगर निगमों का लोगों पर करीब 1282 करोड़ रुपए बकाया है। इसमें सबसे अधिक प्रापर्टी टैक्स है, जबकि पानी व सीवर आदि का टैक्स भी शेष है। सरकारी विभागों की ओर भी करोड़ों रुपए टैक्स बकाया है। अब जहां जनता पर सख्ती की जाएगी।
वहीं, नगर निगमों को विकास कार्यों के लिए सरकारी विभागों से भी राशि लेनी होगी, क्योंकि सरकार ने साफ कर दिया है कि खुद कमाओ और खुद लगाओ। ऐसे में बड़े शहरों के विकास का खाका किस तरह का होगा, यह संबंधित नगर निगम के मेयरों व कमिश्नरों को तय करना होगा।
इस संदर्भ में शनिवार को सीएम के साथ मेयर व कमिश्नरों की बैठक चंडीगढ़ में आयोजित की गई। उल्लेखनीय है कि बजट के अभाव में सभी विधानसभा में विकास कार्य अटके हुए हैं। इसका बड़ा कारण लोगों की ओर टैक्स जमा न करना पाया गया है।
करनाल व फरीदाबाद को मिलेगी आपात मदद
नगर निगमों को स्वायत्ता प्रदान करने से पहले सर्वे करवाया था। इसमें नगर निगमों की आमदनी, कार्यशैली, आर्थिक स्थिति के साधन आदि के बारे में रिपोर्ट तैयार की गई थी। इसमें खुलासा हुआ था कि गुड़गांव, हिसार व अम्बाला नगर निगम की वित्तीय स्थिति ठीक है। करनाल व फरीदाबाद यानी स्मार्ट सिटी के नगर निगम घाटे में मिले, जबकि यमुनानगर, रोहतक, सोनीपत, पानीपत और पंचकूला इस मामले में औसत मिले थे। सरकार ने करनाल व फरीदाबाद को आपात स्थिति में वित्तीय मदद का भरोसा दिया है।
मेयरों को एसीआर के अधिकार नहीं
सभी नगर निगमों के मेयर यही चाहते थे कि उनके अधिकारों में बढ़ोत्तरी की जाए। सरकार ने मेयरों की वित्तीय शक्ति साढ़े सात करोड़ रुपए बढ़ाकर 10 करोड़ रुपए कर दी है, लेकिन उन्हें एसीआर लिखने के अधिकार की मांग फिलहाल पूरी नहीं हो पाई है। कई मेयरों ने यहां तक कहा कि जिस नगर निगम के वे मेयर हैं, उनके इलाके में दो से तीन विधानसभा इलाके आते हैं। उनकी पावर बढ़ाई जानी चाहिए।
बैठक में नहीं पहुंचे निकाय मंत्री विज
नगर निगम अर्बल लोकल बॉडी डिपार्टमेंट के अंडर हैं। इनके मंत्री अनिल विज हैं। शनिवार को हुई बैठक में वे नहीं पहुंचे। मंत्री अम्बाला स्थित अपने निवास पर लोगों की शिकायतों का समाधान कर रहे थे। सूत्रों का कहना है कि बैठक में मंत्री का न पहुंचना, सीएम व मंत्री के बीच दूरियां बढ़ना है। इसका बड़ा कारण सीआईडी का विवाद है। ऐसा नहीं है कि मंत्री को बैठक की जानकारी नहीं थी। इसके बावजूद मंत्री का बैठक में न पहुंचना, कई सवालों को जन्म देता है।
विकास कार्य रुके
प्रदेश के किसी भी नगर निगम के पास विकास कार्यों के लिए बजट नहीं है, क्योंकि बजट का ज्यादा हिस्सा कर्मचारियों की सैलरी देने पर ही खर्च होता है।
यह कदम भी जरूरी है
नगर निगम एरिया में बहुत ऐसे प्लॉट हैं, जो खाली पड़े हैं। लोगों ने खरीदकर छोड़ रखे हैं, उन्हें अच्छी कीमत का इंतजार है। एचएसवीपी की तरह निगम भी नियम बनाकर खाली पड़े प्लॉट मालिकों से टैक्स वसूल सकता है।
इन पर ध्यान दें ताे बढ़ सकता है रेवेन्यू
प्राॅपर्टी टैक्स: नगर निगम बकाया प्रॉपर्टी टैक्स वसूलने पर सबसे ज्यादा ध्यान दे। संभव है कि कुछ सख्ती भी हो, लेकिन निगम को प्रॉपर्टी टैक्स वसूलने के लिए अपना सिस्टम भी ठीक करना होगा।
डिवेलपमेंट चार्ज: डिवेलपमेंट चार्ज अभी बहुत कम है। शहर के सभी हिस्साें में दुकानें, अस्पताल और अन्य संस्थान बन रहे हैं।निगम में शायद ही काेग कनवर्जन चार्ज जमा कराता हाे। नक्शा पास करने में भी सुधार की जरूरत है, क्योंकि बिना नक्शा पास कराए ही बिल्डिंग बनाई जा रही है।
सीएलयू: शहराें में धड़ल्ले से इंडस्ट्री की जगह कॉम्प्लैक्स काटे जा रहे। कॉलोनियों बस रही है। अब तो इसे राजनीतिक संरक्षण भी मिलने लगा है। ये सीएलयू लिए बिना ही काटी जा रही है। इसे भी ठीक करना होगा।
ट्रेड टैक्स: काेई भी व्यवसाय चलाने के लिए ट्रेड लाइसेंस जरूरी हाेता है। यह अधिकांश के पास लाइसेंस नहीं हाेता। निगम कोई व्यवस्था करके इस टैक्स काे वसूल सकते हैं।
स्टांप ड्यूटी: संभव है कि सरकार स्टाम्प ड्यूटी बढ़ाने का अब फैसला ले। खासकर शहर में, जहां पर नगर निगम को डिवेलपमेंट के लिए खुद रेवेन्यू जेनरेट करना है। चूंकि मार्केट रेट
और कलेक्टर रेट में बहुत अंतर है। इसलिए कलेक्टर रेट बढ़ सकता है।