Star Khabre, Haryana; 15th April : प्रदेश की भाजपा सरकार चाहे लाख दावे करती हो कि उसके राज में भर्तियों में कोई भाई-भतीजावाद नहीं है, कोई सिफारिश नहीं है, कोई मेरिट से खिलवाड़ नहीं है । लेकिन हकीकत यह है कि कि बेखौफ अफसरशाही सरकार की आंखों में धूल झोंकते हुए मनचाहे लोगों को मनचाही नौकरियां देने का काम कर रही है। राज्यपाल और सीएम की नाक के नीचे एक अधिकारी ने अपने 3 दर्जन रिश्तेदार लगवा दिए।
हरियाणा स्टेट कौंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर में बड़ा गड़बड़ झाला
राज्यपाल और सीएम की अगुवाई वाली हरियाणा स्टेट कौंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर तो इस मामले में सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है। काउंसिल का एक अधिकारी इस मामले में इतना शातिर दिमाग है कि राज्यपाल और सीएम की परवाह किए बगैर अपने तीन दर्जन रिश्तेदारों को काउंसिल में छोटी-बड़ी नौकरियां दिलाने का कारनामा कर गया है । ओपी मेहरा नाम का यह अधिकारी न केवल खुद कई गड़बडिय़ों में शामिल है बल्कि दूसरे अफसरों के साथ मिलकर काउंसिल को घर की जागीर बनाकर काम कर रहा है। ओपी मेहरा पहले अपने रिश्तेदारों को कांटेक्ट पर और छोटे प्रोजेक्टों में टेंप्रेरी बेस पर नौकरियां लगाते हैं। उसके बाद काउंसिल में ही उनका एक्सपीरियंस बनाते हुए बाद में नौकरियों पर पक्के करवा देते हैं। एक छोटी पक्की नौकरी के बाद बड़ी पक्की नौकरी दिलाने में भी वह कोई कोताही नहीं करते हैं। यही कारण है कि काउंसिल.में मेहरा के रिश्तेदार हर ऑफिस में मौजूद हैं। ऑफिस के कई कर्मचारी तो काउंसिल को मेहरा वेलफेयर काउंसिल के नाम से भी पुकारने लगे हैं। मेहरा ने जहां नियमों के विपरीत जाते हुए प्रमोशन हासिल की और पीछे का एरियर हासिल किया बल्कि बाकी लोगों को भी मनमर्जी की पोस्टिंग और वोट देने में कभी कंजूसी नहीं करते हैं। वह सरकार की पारदर्शिता की भर्ती नीति की धज्जियां उड़ाते हुए सिर्फ अपने लोगों को ही नौकरियां देने के फार्मूले पर काम कर रहे हैं।
अधिकारी ने चोर दरवाजे से लगवाए अपने 3 दर्जन रिश्तेदार
24 मार्च को तो उन्होंने ऐसे 2 लोगों को डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसर बना दिया जिनकी नियुक्ति के लिए काउंसिल ने तो कोई अखबार में विज्ञापन दिया, न कोई आवेदन मांगे, न ही लिखित परीक्षा हुई और ना ही इंटरव्यू हुआ।मेहरा अपने दोनों जानकारों को सीधे 70 हजार वेतन लेने वाले क्लास वन ऑफिसर बना दिया। मामले का आगाज नवंबर 2017 में हुआ था जब काउंसिल ने डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसर पद और प्रोग्राम ऑफिसर के लिए 3-3 पदों के विज्ञापन निकाले थे। 24 जनवरी 2018 को सभी 6 पदों पर 6 लोगों को नियुक्ति दे दी गई। डिस्ट्रिक्ट कैडर के लिए 3 लोगों की मेरिट सूची जारी करने के अलावा तीन लोगों की वेटिंग सूची जारी की गई। तीनों नौकरी ज्वाइन कर ली जिसके चलते वेटिंग लिस्ट का अस्तित्व खत्म हो गया था। लेकिन मेहरा ने तमाम नियमों को दरकिनार करते हुए अपने रिश्तेदार ओमप्रकाश और जान-पहचान की रितु रानी को बिना किसी परेशानी के सीधा क्लास वन ऑफिसर जिला बाल कल्याण अधिकारी नियुक्त कर दिया इसके लिए तो सरकार से कोई परमिशन ली गई न ही अखबार में कोई विज्ञापन दिया गया, न ही कोई चयन की प्रक्रिया निभाई गई। सीधा 11 नवंबर को निकाली गई। 3 पोस्टों की वेटिंग लिस्ट में शामिल दोनों जानकारों को नौकरी दे दी। कानून के जानकारों का कहना है कि वेटिंग सूची में शामिल लोगों को तभी ज्वाइन कराया जा सकता है जब मेरिट सूची में शामिल कोई कैंडिडेट ज्वाइन नहीं करता है। खास बात यह है कि मेरिट सूची में शामिल तीनों लोगों में से भी पहला विनोद ओमप्रकाश मेहरा का रिश्तेदार है, दूसरा ओमप्रकाश मेहरा का राजदार है और तीसरी काउंसिल में ही तैनात पूनम सूद की बेटी शिवानी सूद है । तीनों पदों पर मेरिट में लोगों को भर्ती करने की बजाय सिर्फ जानकारों को भर्ती करने का काम अंजाम दिया गया है। यह भाजपा सरकार की पारदर्शी भर्ती के दावों की धज्जियां उड़ाने के अलावा कुछ भी नहीं है। न्युज ने इसके बारे में पहले ही पर्दाफाश कर दिया था कि ओपी मेहरा अपने रिश्तेदारों व जानकारों को ही नौकरियां लगवाएंगे। इसके बारे में सरकार में शामिल खास लोगों को भी जानकारी दी गई थी लेकिन सरकार ने इस बारे में कोई भी कार्यवाही करने की जरूरत नहीं समझी। यही कारण था कि ओपी मेहरा के हौसले इतने बुलंद हो गए कि उसने सरकार को ठेंगा दिखाते हुए मनमर्जी के लोगों को क्लास वन अधिकारी बना दिया। ज्यादा अनुभव और ज्यादा काबिलियत वाले लोग तो मुंह ताकते रह गए और मेहरा के करीबी लोग डंके की चोट पर अफसर नियुक्त हो गए। इस मामले में मेहरा ने काउंसिल के सर्विस रूलों को भी तोडऩे में गुरेज नहीं किया। काउंसिल के नियमों के अनुसार एक तिहाई खाली पदों को प्रमोशन के जरिए भरा जाना होता है लेकिन मेहरा ने सारे के सारे पदों को सीधी भर्ती से भर दिया। इस बारे में ओपी मेहरा ने यह भी चालबाजी की कि वह हाल ही में कार्यकाल पूरा करने वाले संतोष अटरेजा से जाते जाते दोनों चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसरों को भर्ती करवाकर बड़ा गेम खेल गए। अब देखना यह है कि नए मानद सचिव कृष्ण ढुल इस बारे में क्या कार्रवाई करते हैं। अगर कृष्ण ढुल पहले के मानद सचिवों की तरह ओपी मेहरा के चंगुल में फंस गए तो मेहरा का राजपाठ ऐसे ही चलता रहेगा ऐसे ही फर्जी भर्तियां होती रहेंगी और अगर कृष्ण ढूल ने मामले की गंभीरता को समझते हुए ओपी मेहरा के सारे फर्जीवाड़े की जांच करवाई तो काउंसिल का बैठाने का खुलासा हो जाएगा। अब देखना यह है कि कृष्ण किस तरह से ओपी मेहरा के इस भ्रष्ट चक्रव्यूह को भेदते हुए काउंसिल को भ्रष्टाचार से मुक्त करा पाते हैं और गलत तरीके से लगाए हुए लोगों को हटाते हुए इस साजिश में शामिल लोगों को दंडित करवा पाते हैं।