Star Khabre, Faridabad; 18th September : इस लेख की हैडिंग में जो शेर लिखा गया है, ये नई पंक्तियां जाने-माने शायर और लेखक जावेद अख़्तर ने पत्नी शबाना आजमी के 69वें बर्थडे के लिए खास तौर पर भास्कर से शेयर की हैं। उन्होंने इसका मतलब भी समझाया है। शेर का मतलब उन्हीं के शब्दों में, शबाना जी की शक्ल बहुत सुंदर है, यह बात ठीक है और अपनी जगह है, लेकिन हमको तो इंटेलिजेंट लोगों से हमेशा से ही प्यार था। जावेद ने शेयर की अपनी और शबाना की कहानी नहीं याद कब पहली बार मिले'
यकीन मानिए यह मुझे भी याद नहीं है कि मैं शबाना जी से पहली बार कब मिला। हम दोनों का जन्म एक ही ट्राइब में हुआ है। मुंबई में उस जमाने के जो प्रोग्रेसिव राइटर थे, जैसे सरदार जाफरी, कैफी आजमी, इस्मत चुगताई, कृश्न चंदर, जां निसार अख्तर, मजरूह सुल्तानपुरी, ये सभी एक ट्राइब जैसे थे। या फिर आप कह सकते है कि एक एक्सटेंडेड फैमिली की तरह थे। ये सब एक दूसरे के घरों में जाते थे। एक दूसरे के बच्चों को जानते थे और उनके बच्चे भी एक दूसरे को जानते थे। तो इस एक्सटेंडेट फैमिली की बदौलत मेरी और शबाना की पहली बार मुलाकात हुई होगी।
मुझे याद नहीं है, शायद वह एक साल की रही होंगी और मैं चार साल का। मुझे याद नहीं है कि शबाना जी के पैरेंट्स कैफी साहब या शौकत आपा को मैंने जिंदगी में पहली बार कब देखा। न शबाना को पता है कि उन्होंने मुझे फर्स्ट टाइम कब देखा और न मुझे याद है कि मैंने उन्हें पहली बार कब देखा। बस इतना पता है कि हम एक ही ट्राइब में पले बढ़े हैं।
लोग बोलते हैं कि हमारी अरैंज मैरिज होना चाहिए थी'
कभी-कभी लोग मजाक में बोलते हैं कि हमारी अरैंज मैरिज होना चाहिए थी, क्योंकि हमारे बैकग्राउंड एक जैसे हैं। मेरे पिताजी और उनके पिताजी बहुत अज़ीज़ दोस्त हुआ करते थे। मेरी मां शबाना जी की मां से बड़ी थीं, तो उनको अपनी छोटी बहन जैसा मानती थीं। इस तरह कह कह सकते हैं कि हमारा रिश्ता जो है वह हमारी पैदाइश से भी पहले का है।
पहला प्रपोजल
यह बात भी कोई अचानक नहीं हुई, धीरे-धीरे सरकते-सरकते ही हुई है। आखिरकार बात करना ही थी और ऐसा नहीं है कि उनको प्रपोज करने के लिए मैं अपने घुटनों के बल बैठ गया। एक दिन हम दोनों ने फैसला लिया कि शायद हम दोनों एक-दूसरे के लिए बने हैं। किस्मत ने भी हमें एक-दूसरे के साथ रहने के लिए बनाया है।
पहला गिफ्ट
शादी के बाद उनके पहले बर्थडे पर जो गिफ्ट मैंने दिया था शायद वह कोई बुक थी। अभी इस बार मुझे उन्हें क्या गिफ्ट देना चाहिए, यह मुझे समझ में ही नहीं आ रहा है। अभी मैं शबाना की गॉडडॉटर नम्रता गोयल से डिस्कस कर रहा था कि उन्हें क्या गिफ्ट दूं। शबाना ने कहा है कि, खबरदार तुमने मुझे कुछ प्रेजेंट दिया तो...। उन्हें कुछ नहीं चाहिए। उन्हें ज्वेलरी पसंद नहीं है और न ही उन्हें डायमंड पसंद हैं। पिछले साल मैंने एक अच्छी घड़ी दी थी, तो इस बार मुश्किल में हूं कि क्या दिया जाए।
पहला प्रॉमिस
जब मैंने और शबाना ने जिंदगी का सफर एक साथ बिताने के लिए एक-दूसरे का हाथ थामा, तब मैं तीस साल का था। इस उम्र में सभी का एक रोविंग आई (नजरें दो चार-करना) अंदाज होता है, पर मैंने उस समय शबाना को प्रॉमिस किया कि मैं पूरी जिंदगी उनके प्रति लॉयल रहूंगा। मुझे बहुत फ़क्र है कि मैं आज तक अपने वादे को बहुत अच्छे से निभा रहा हूं।
पूरा चैप्टर ही शबाना जी के नाम
मैंने अपनी ग़ज़लों और नज़्मों का संग्रह लिखा है, जिसका नाम है 'लावा'। जिसका नया एडिशन भी आया है। उसमें मैंने एक चैप्टर को ही शबाना जी को समर्पित किया है और उसका नाम भी शबाना ही है। उसकी कुछ लाइनें इस तरह हैं-
यहां जाना, वहां जाना, इससे मिलना, उससे मिलना
हमारी जिंदगी ऐसी है जैसे रेलवे स्टेशनों पर अपने-अपने डिब्बे ढूंढते कोई मुसाफिर हों।
इन्हें कब सांस भी लेने की मोहलत है,
तभी लगता है कि तुमको मुझसे और मुझको तुमसे मिलने का ख़याल आए, कहां इतनी भी फुरसत है।
मगर जब ज़िन्दगी चलते-चलते दिल तोड़ती है तो तब मुझे तुम्हारी ज़रूरत पड़ती है।
बहुत गहरी है हम दोनों की दोस्ती
जावेद अख़्तर से जब एक ऐसे अहसास के बारे में पूछा गया कि जिसे अब तक वे शबाना जी को बयां ही नहीं कर पाए हों। तो उनका जबाव था- ऐसा अहसास जो मैं शबाना जी को भी बयां नहीं कर पाया, उसे तो मैं पब्लिक में नहीं बता सकता। हां फिर से वही बात कहूंगा जो मैं हमेशा कहता रहा हूं, कि मेरी और शबाना की दोस्ती इतनी गहरी और अच्छी है कि शादी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाई।