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दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित अमिताभ की जिंदगी की 4 कहानियां, जो उनके संघर्ष को बताती हैं

September 25, 2019 11:40 AM

Star Khabre, Faridabad; 25th September : अमिताभ बच्चन को उनके करियर के 50वें साल में 2018 के दादा साहब फाल्के अवॉर्ड के लिए चुना गया है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंगलवार को यह जानकारी दी। अमिताभ ने यह शिखर काफी संघर्षों के बाद पाया है। उनके संघर्ष से भरी ऐसी ही किस्से हम आपको बता रहे हैं। 

गिरते-गिरते उठने के चार किस्से

फ्लॉप से घबराए नहीं, डटे रहे

फिल्मी करियर की फ्लॉप शुरूआत के बाद मुंबई के निर्माता निर्देशक उन्हें फिल्म में लेने से कतराने थे। अमिताभ निराश होने लगे थे। उन दिनों प्रकाश मेहरा 'जंजीर'(1973) की कास्टिंग कर रहे थे। तब प्राण ने उन्हें अमिताभ को इसमें लेने के लिए तैयार किया।

फिल्म बनकर तैयार हो गई, लेकिन वितरक इसे लेने तैयार नहीं थे। क्योंकि अमिताभ उनके लिए पिटे हुए हीरो थे। हालांकि, अमिताभ ने इस दौरान धैर्य नहीं खोया। खैर किसी तरह 'जंजीर' रिलीज हुई और जिसने भी यह फिल्म देखी, वह उनका दीवाना हो गया।

घातक चोट लगने के बाद फिर उठ खड़े हुए

1983 में आई 'कुली' में अमिताभ के साथ हुआ हादसा बहुत ही दर्दनाक था। एक्टर पुनीत इस्सर का एक घूंसा लगने से स्थिति यह हो गई कि अमिताभ को सीधे अस्पताल में भर्ती कराया गया। ये वह समय था, जब अमिताभ का करियर चरम पर था।

ऐसे में देश में हर जगह अमिताभ के लिए दुआएं और प्रार्थनाएं होने लगी थीं। आखिरकार, अमिताभ ने लोगों की दुआओं और अपने जीवट के दम पर जिंदगी की ये जंग जीत ली और स्वस्थ होकर अस्पताल से बाहर निकले।

राजनीतिक विफलता भूल सफलता के पथ पर बढ़े

1984 में अमिताभ को इलाहाबाद की लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर एच. एन. बहुगुणा के सामने उतारा गया था, जो कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। अमिताभ इस चुनाव में बहुत ही बड़े अंतर से जीते थे, लेकिन चुनाव जीतने के तीन साल बाद ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

उस समय बोफोर्स कांड की गहमा-गहमी अपने चरम पर थी और गांधी परिवार के साथ-साथ बच्चन परिवार को भी इस घोटाले में घसीटा गया था। इससे अमिताभ बहुत आहत हुए थे। लेकिन इन सब से निकलकर वे फिर से फिल्मों में सफलता हासिल कर सके।

अंधेरी रात के बाद आखिर आई नई सुबह

1995 में अमिताभ ने 'अमिताभ बच्चन कॉर्पोरेशन लिमिटेड' (ABCL) की शुरुआत की, जो एक फिल्म प्रोडक्शन और इवेंट मैनेजमेंट कंपनी थी। प्रॉपर प्लानिंग न होने और मैनेजमेंट की कमी ने उनकी कंपनी को बिखेर कर रख दिया। यह दौर अमिताभ की जिंदगी का सबसे बुरा दौर था। यहां तक कि अमिताभ अपनी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों को उनकी सैलरी तक नहीं दे पाए थे।

एबीसीएल के फ्लॉप होने के बाद अमिताभ बच्चन के मुंबई वाले घर और दिल्ली वाली जमीन के जब्त होने और नीलाम होने की स्थिति आ गई थी। बैंक पैसे की वसूली के दबाव डालने लगे, तब अमिताभ बोर्ड ऑफ इंडस्ट्रियल एंड फाइनेंशियल रीकंस्ट्रक्शन के पास गए और मदद मांगी।

ऐसे में मुंबई हाईकोर्ट ने उन्हें अपने मुंबई वाले दोनों बंगले बेचने से रोका और दूसरे तरीके से अपना लोन चुकाने की मोहलत दी।

अमिताभ ने इस बारे में खुद बताया है कि 'मैं ये सब बंद नहीं करना चाहता था। बहुत सारे लोगों का इसमें पैसा लगा हुआ था और लोगों को इस कंपनी में भरोसा था। और ये सब मेरे नाम की वजह से था। मैं उन लोगों के साथ धोखा नहीं कर सकता था। उन दिनों मेरे सिर पर हमेशा तलवार लटकती रहती थी। मैंने कई रातें बिना सोए गुजारीं।"

अमिताभ ने आगे कहा था, "एक दिन मैं खुद ही सुबह-सुबह यश चोपड़ा के पास गया और उनसे कहा कि मुझे काम चाहिए। यशजी न उसके बाद मुझे 'मोहब्बतें' ऑफर की।'

मोहब्बतें' मिलने के बाद ही अमिताभ को 'केबीसी' की होस्टिंग का ऑफर मिला था, जिससे उन्हें नई पहचान मिली थी। अमिताभ बताते हैं कि 'इसके बाद मैंने कमर्शियल और फिल्में करना शुरू कर दिया था। मेरे ऊपर चढ़ा 90 करोड़ रुपए का कर्ज उतर गया और मैं एक नई शुरुआत करने में कामयाब रहा।

 
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